भारतीय रंग मंच
भारतीय थिएटर के प्रादुर्भाव का इतिहास पौराणिक कथा काल में हुआ जब भ्रष्टाचार और शक्ति के चंगुल से मानवता को मुक्त करने की आवश्यकता से ब्रहमा ने नाट्य शास्त्र या नाटक कला का सृजन किया और इसके अर्थभेद से विवेकपूर्ण भारत को आलोकित किया, जिसने बाद में कला रूप को अपने शिष्यों को सिखाया जिसे उसने पूरी दुनिया में फैलाया। इस प्रकार से अभिनय कला का एक सबसे पुरान रूप अस्तित्व में आया, जो असंख्य चरणों के जरिए दर्शकों के मन को आहलादित करने के लिए प्रबल रहा, जिन्होंने किसी नाटकीय अभिनय देखा है।
भारतीय थिएटर भारत की संस्कृतियों और परम्पराओं के बारे में बहुत कुछ बयान करता है, इसके त्यौहारों के रंग, और जन समूह का कोलाहल। भारत में थिएटर अभिनय व्याख्यात्मक शैली में शुरू हुआ जिसमें बहुत अधिक वर्णन गाने और नृत्य शामिल थे। इन सभी कला रूपों के संकलन के कारण ही थिएटर अभिनय और सृजनात्मक कला के सभी अन्य रूपों में अव्वल रहा। भारतीय थिएटर चूंकि ब्रहमा ने अपने आप दुनिया में सम्पन्न किया है, यह आरंभिक दिनों के दौरान देवताओं को समर्पित और सम्मानित करने की सतत यात्रा रहा है। बाद में नाटकीय के जटिल रूपों का विकास हुआ जो समकालीन थिएटर कहलाता है।
भारतीय थिएटर को मोटे तौर पर तीन विकास अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है - प्राचीन काल, परम्परागत काल और आधुनिक काल ये अवस्था ने घटनाएं और घटनाक्रम निर्धारित किए हैं, जिन्होंने भारतीय थिएटर को संवारा है, जो आज प्रचलित है।
प्राचीन काल
इस काल में नाटक का संकेन्द्रण नाटक लिखने के कार्य के इर्द-गिर्द और रंगमंच अभिनय या नाटक प्रस्तुत करने की कला के इर्द-गिर्द था। इसी अवधि के दौरान भारतीय थिएटर में कालिदास, पतंजलि, भास और शूद्रक जैसे नाटककारों द्वारा श्रेष्ठ कृतियों का सृजन हुआ, जिन्होंने संस्कृत नाटक को गौरवान्वित करने में बहुत अधिक योगदान दिया। नाटककार अपनी योजना तैयार किए, अधिकाशंत: उन कहानियों पर आधारित थे, जिन्हें उन्होंने महाकाव्य लोक गीत, इतिहास, पौराणिक गाथा आदि से लिया था। इससे दर्शकों के लिए नाटक को समझना आसान हो गया जिन्होंने उन कहानियों का सृजनात्मक प्रस्तुतीकरण देखने के लिए भाग लिया जिनसे वे पहले से ही परिचित थे। अभिनेताओं को कला रूप में बड़े कौशल होने की आवश्यकता थी ताकि ऐसे नाटकों से दर्शकों को आह्लादित कर सकें।
आधुनिक अवधि
आधुनिक अवधि में ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय नाट्य कला के साथ पश्चिमी नाट्य कला के साथ मेल-जोल दिखाई पड़ा और एक ऐसी नाट्य कला का विकास आरंभ हुआ जिसका आधार जीवन के वास्तविक या प्राकृतिक तत्व थे। आधुनिक नाट्य कला ने व्यावहारिक मुद्दों पर अधिक ध्यान देकर जीवन के अधिक प्राकृतिक तत्वों का चित्रण आरंभ किया।
भारत में नाट्य कला तीन अवधियों में विभिन्न चित्रण और विकास हुआ और क्रमश: वर्तमान समय के समकालीन नाटक का मार्ग प्रशस्त हुआ। विभिन्न राष्ट्रीय संस्थाओं और अकादमियों ने आगे आकर भारत में नाटक को प्रोत्साहन दिया, जो अब विश्व विख्यात कलाकारों को आगे लाई, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं।
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