Sometimes it is hard to introduce yourself because you know yourself so well that you do not know where to start with. Let me give a try to see what kind of image you have about me through my self-description. I hope that my impression about myself and your impression about me are not so different. Here it goes.
Thursday, December 23, 2010
प्याज की पहेली !!!
प्याज की पहेली यह अच्छी बात है कि आम जनता की तरह प्रधानमंत्री भी इससे हैरान हैं कि प्याज के भाव अचानक आसमान क्यों छूने लगे, लेकिन इसमें संदेह है कि उनके कार्यालय की ओर से कृषि और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय को चिट्ठी लिखने भर से बात बनने वाली है। चूंकि महज दो-चार दिन में प्याज के भाव दोगुने होने का कोई तर्कसंगत कारण नजर नहीं आता इसलिए सरकार को कम से कम यह तो बताना ही चाहिए कि प्याज यकायक आम जनता की पहुंच से दूर कैसे हो गया? अभी तो यही समझना मुश्किल है कि प्याज की किल्लत क्यों पैदा हुई, क्योंकि एक ओर जहां कृषि और खाद्य मंत्री शरद पवार यह कह रहे हैं कि फसल खराब होने से यह समस्या आई है वहीं दूसरी ओर सरकार में ही कुछ लोग इसके लिए जमाखोरों को जिम्मेदार मान रहे हैं। स्पष्ट है कि अभी यह तय नहीं कि प्याज के दाम किन कारणों से आसमान छू रहे हैं। आखिर जो सरकार किसी समस्या के कारणों से ही परिचित न हो वह उसका समाधान कैसे कर सकती है? यदि प्याज उत्पादन में अग्रणी नाशिक में बारिश के कारण 20 प्रतिशत फसल खराब हो गई थी तो भी इतने मात्र से उसके दाम एक सप्ताह मेंदोगुना कैसे हो सकते हैं? ऐसा तो तभी हो सकता है जब जमाखोरों को यह संकेत दिया गया हो कि उनके लिए कमाई करने का समय आ गया है। क्या यह लज्जाजनक नहीं कि केंद्र सरकार की नाक के नीचे यानी दिल्ली में प्याज की जमाखोरी की गई है? आखिर कृषि के साथ-साथ खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय संभालने वाले शरद पवार किस मर्ज की दवा हैं? प्याज की फसल खराब होने से परिचित होने के बावजूद उन्होंने इसके लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किए कि उसकी आपूर्ति प्रभावित न होने पाए? यदि एक साथ दो मंत्रालय संभालने वाले शरद पवार को जनता की परवाह ही नहीं तो फिर उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में क्यों होना चाहिए? क्या कारण है कि उनकी अनिच्छा के बावजूद खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय उनके पास बना हुआ है? इस पर आश्चर्य नहीं कि प्याज के दामों में अप्रत्याशित तेजी के पीछे कोई घपला-घोटाला हो। शरद पवार ने जिस तरह प्याज के दामों पर शीघ्र काबू पाने का आश्वासन देने के बजाय यह कहा कि हालात सामान्य होने में तीन हफ्ते लग जाएंगे उससे तो यह लगता है कि उन्हें या तो प्याज के व्यापारियों की फिक्र है या फिर उसकी जमाखोरी करने वालों की? जब जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों और विशेष रूप से केंद्रीय मंत्रियों से यह अपेक्षित है कि वे आने वाली समस्या को समय रहते भांपकर ऐहतियाती कदम उठाएं तब खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शरद पवार उलटा काम कर रहे हैं। प्याज का संकट महज एक फसल की किल्लत ही नहीं है, बल्कि यह खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय के साथ-साथ केंद्रीय सत्ता की नाकामी और एक तरह के जनविरोधी आचरण का एक और उदाहरण है। ध्यान रहे कि ऐसा ही नाकारापन तब दिखाया गया था जब चीनी के दाम बेकाबू हो रहे थे। प्याज का संकट यदि कुछ बयान कर रहा है तो यह कि संप्रग सरकार से महंगाई पर लगाम लगाने की अपेक्षा रखना व्यर्थ है। वैसे भी ऐसा कुछ होता नजर नहीं आता।
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