Tuesday, January 25, 2011

पंडित भीमसेन जोशी का गायन प्रभावशाली था

स्मरण भीमसेन जोशी पंडित भीमसेन जोशी का गायन जितना प्रभावशाली था उनका संगीत साधना का सफर भी उतना ही दिलचस्प रहा। उनका जन्म 4 फरवरी 1922 को कर्नाटक के धारवाड़ जिले में गडग में में हुआ। उनके पिता गुरुराज जोशी अध्यापक थे। भीमसेन का बचपन से ही रुझान गीत-संगीत की ओर था। उन्होंने एक बार उस्ताद अब्दुल करीम खान की ठुमरी पिया बिन नहीं आवत चैन.. सुनी। इसने उनके अंतर्मन पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि उन्होंने जीवन संगीत को समर्पित करने की ठान ली और किसी गुरु की तलाश में 11 वर्ष की आयु में घर से भाग गए। वह संगीत सीखने के लिए किसी अच्छे गुरु की तलाश में दिल्ली, कोलकाता, ग्वालियर, लखनऊ, रामपुर सहित कई स्थानों पर भटके। उनके पिता उनकी तलाश में भटक रहे थे। आखिरकार उन्होंने उन्हें जालंधर में ढूंढ़ निकाला और वापस घर ले गए। पंडित सवाई गंधर्व ने 1936 में पंडित जोशी को शिष्य बना लिया और वहीं से उनकी विधिवत संगीत साधना आरंभ हुई। सवाई गंधर्व के गुरु उस्ताद अब्दुल करीम खान थे, जिन्होंने अपने भाई अब्दुल वहीद खान के साथ मिलकर संगीत के किराना घराने की स्थापना की थी। गुरु गंधर्व की छत्रछाया में पंडित जोशी ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं ख्याल, ठुमरी, भजन और अभंग की गायकी में महारत हासिल की। दरबारी, शुद्ध कल्याण, मियां की तोड़ी, मुल्तानी आदि उनके पसंदीदा राग थे। 22 वर्ष में उनका पहला संगीत संग्रह एचएमवी ने जारी किया। उन्होंने कन्नड़, हिंदी और मराठी भाषा में भजन भी गाए। पं. जोशी को 1972 में पद्मश्री, 1976 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1985 में पद्मभूषण, 1985 में सर्वश्रेष्ठ पा‌र्श्व गायन के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 1999 में पद्म विभूषण, 2005 में कर्नाटक रत्न और 2008 में भारत रत्न सम्मान मिला। उन्होंने बीरबल, माई ब्रदर, तानसेन और अनकही आदि फिल्मों में पा‌र्श्वगायन किया। पंडित जोशी के दो विवाह हुए। उनके छह बच्चे हैं। उनके एक पुत्र श्रीनिवास जोशी उनकी परंपरा आगे बढ़ा रहे हैं।