Tuesday, March 8, 2011

आरक्षण की मांग

अनुचित तरीका जाट समुदाय के नेताओं की केंद्रीय सेवाओं में आरक्षण की मांग के पीछे कुछ उपयुक्त आधार हो सकते हैं, लेकिन वे अपनी मांगें मनवाने के लिए जिन उपायों का सहारा ले रहे हैं वे सर्वथा अनुचित और अस्वीकार्य हैं। आरक्षण की मांग के लिए रेल ट्रैक बाधित करने का कहीं कोई औचित्य नहीं। रेल यातायात ठप करना एक तरह से समाज को बंधक बनाना और राष्ट्र को क्षति पहुंचाना है। समस्या यह है कि अब किस्म-किस्म के आंदोलनकारी कहीं अधिक आसानी से रेलों को निशाना बनाने लगे हैं। हाल ही में अलग तेलंगाना राज्य की मांग कर रहे लोगों ने जब अपने आंदोलन को गति दी तो उन्होंने सबसे पहले रेल यातायात को ही बाधित किया। इसी तरह नक्सली जब चाहते हैं तब रेल यातायात ठप कर देते हैं। विडंबना यह है कि जबसे ममता बनर्जी रेलमंत्री बनी हैं तब से रेल प्रशासन नक्सलियों के आगे हथियार डालकर खुद ही रेलों का आवागमन रोक देता है। अब तो उन मांगों को लेकर भी रेल यातायात अवरुद्ध किया जाता है जिनका केंद्र सरकार से कोई लेना-देना नहीं होता। हालांकि उच्चतम न्यायालय हर छोटी-बड़ी बात पर रेल यातायात ठप करने की प्रवृत्ति के खिलाफ गहरी नाराजगी जता चुका है और वह रेल ट्रैक बाधित करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने के भी निर्देश दे चुका है, लेकिन न तो राज्य सरकारें अपेक्षित गंभीरता का परिचय दे रही हैं और न ही केंद्र सरकार। हरियाणा में दलितों के उत्पीड़न के एक मामले में पुलिस की कार्रवाई से खफा एक वर्ग विशेष के जिन लोगों ने रेल यातायात को निशाना बनाया था उनके खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश राज्य सरकार को दिए गए थे, लेकिन उसने कार्रवाई के नाम पर लीपापोती ही अधिक की। यदि यह सोचा जा रहा है कि रेल मंत्रालय के इस आश्वासन से आंदोलनकारी रेलों को निशाना बनाना छोड़ देंगे कि जिन राज्यों में रेल यातायात बाधित नहीं किया जाएगा उन्हें नई ट्रेनों और परियोजनाओं का लाभ दिया जाएगा तो यह सही नहीं, क्योंकि रेल अथवा सड़क मार्ग बाधित करने की प्रवृत्ति ने एक राष्ट्रीय समस्या का रूप ले लिया है। इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब रेल रोकने की प्रवृत्ति के खिलाफ राज्य सरकारें भी सख्ती का परिचय दें और केंद्र सरकार भी। दुर्भाग्य से फिलहाल ऐसा कुछ होता हुआ नजर नहीं आता। जहां राज्य सरकारें अपनी जिम्मेदारी केंद्र के सिर डालकर पल्ला झाड़ लेती हैं वहीं केंद्र सरकार चेतने से ही इनकार करती है। यही कारण है कि कई बार आंदोलनकारी कई-कई दिनों तक रेल पटरियों पर कब्जा किए रहते हैं। एक बार फिर ऐसा ही देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार न तो जाट नेताओं की आरक्षण संबंधी मांग पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने की जरूरत समझ रही है और न ही उनके द्वारा जगह-जगह रेल यातायात ठप किए जाने के मामले पर। जाट नेताओं की आरक्षण की मांग के संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वे पिछले तीन वर्षो से आंदोलनरत हैं और कोई नहीं जानता कि केंद्र सरकार उनकी मांगों पर किस दृष्टि से विचार कर रही है? उसके ऐसे रवैये से तो यही लगता है कि वह समस्या को टालने की ही नीति पर चल रही है। वस्तुस्थिति जो भी हो, जाट नेताओं को यह समझना ही होगा कि वे इस तरह से समाज की सहानुभूति-समर्थन अर्जित नहीं कर सकते।