Tuesday, July 27, 2010

देश का क्या हाल है ..


आज दिन भर काफी बारिश हुई यहाँ ...सारा दिन टीवी मैं समाचार देखता रहा.सोचता रहा मेरे देश के बारे मैं जी हाँ मेरे देश के बारे मैं....क्यूँ के मुझ को लगता है की आप सब तो यहाँ पर मेहमान है , आप को पता तो होता के मेरे घर मैं आप को खिलने के लिए खाना है भी या नहीं ??? क्यूँ की ऐसा तो सिर्फ मेहमान ही करते हैं उसको सिर्फ अपनी मेहमान नजाज़ी से हे मतलब रहता है...क्यूँ कोई नहीं सोचता इस देश के बारे मैं ? आज़ादी से पहले तो हम ऐसे नहीं थे ? तो आज हम कहलाने को भारतीय क्यूँ है ?? मैंने दो लाइन लिखा है ......

देश का क्या हाल है....
हल तो बेहाल है
हर तरफ खुशियों मैं भी
कर रही सवाल है॥

थालिओं रोटियां भी
कर रही बवाल है
देश का क्या हाल है॥

गेहूंयों की बोरियां
पड़ी यहाँ ..पड़ी वहां।
सड़ रहीं गेहूं मैं
बढ रहा सवाल है..बवाल है।

सब यहं गरीब है, सब वहां आमिर है
देख कर नया तमाशा
वह दे रहे ताल है
देश का क्या हाल है
हल तो बेहाल है

खेल पर खर्च वहां
पांच हज़ार करोड़ है
पर यहाँ भूक से पेट मे
मरोर है पेट मैं मरोर है।

हर समय भूक पर
उठ रहे सवाल है
देश तो बेहाल है
भूक से महंगाई से
देश तो बेहाल
हर कोई यहाँ कर रहा
सवाल है सवाल है॥
कोन यहाँ आमिर है
कोन यहं गरीब है
जो यहाँ दबंग है
वह यहाँ पे वीर है ....

आप का- पार्थ

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